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‘पता है मर्द को कभी दर्द नहीं होता’ , माँ ने कहा श्रावणी से। ‘….क्या! पर कैसे? और क्यों?‘ पूछा श्रावणी ने

‘क्योंकि वो मर्द है. एक ऐसा शक्स जिस पर बंदिशे हज़ार हैं फिर भी वो खुली किताब है.. जो मुस्कुराता, खिलखिलाता, आंखे मीजता सबके दुख को खुद में लिये बस चलता जा रहा है। वो अपना ज़ख्म दिखा भी नहीं सकता, छिपा भी नहीं सकता। वो अपने आंसुओं को जाम के साथ गटकता कल की कमाई का हिसाब लगाता है। कहीं दूर किसी पुरुष ने किसी स्त्री की अस्मिता पर नज़र क्या डाली… पुरी पुरुष प्रजाती के चरित्र प्रमाण पत्र पर प्रश्न उठ गए ।‘

मतलब! मर्द को दर्द होता है?.. श्रावणी अपनी माँ की बातों से विचलित हो उठी .

दर्द उसे बहुत होता है, बस दर्द बांटने वाले कम होते हैं उसके जीवन में .

आज मां की बातों से श्रावणी को ये समझ आया कि जीवन और जीवन के उतार चढाव एक से नहीं , परंतु इनसे अछूता भी कोई नहीं। श्रावणी समझ गई स्त्री हो या पुरुष, योगदान दोनों का समाज निर्माण में है. दोनों एक दूसरे के पूरक है।