फतेह
My reply to the lovers in the series of poems written by Sneha Chaand
फतेह
तोड़ दो सारी बंदिशें
पिघला दो बेड़ियां
ज़माने के तानों से खुद को करके जुदा
सीना ठोक के करदो ऐलान अपनी नापाक मुहब्बत का
है मुहब्बत ये कोई नाजायज गुनाह नहीं
दिल आजाए कब किस पर
इस कमबख्त दिल की हरकतों पे किसी का ऐतबार नहीं
रूहानियत से बरपा ये दिल जो है
दर्द ए इश्क मुहब्बत में डूब जाने दो इसे
कोई रोके तुम्हें तो केह देना ये दिल है दिल कोई फरेबी अदाकार तो नहीं
आखिरकार दिल का मसला है ये
कोई मामूली बात तो नहीं
इस ज़ुल्मी ज़माने ने
दिया मुहब्बत का कभी साथ नहीं
जाओ चीख चीख कर बतलाओ
इन बे दिल दुनिया वालों से
है मुकम्मल तुम्हारा इश्क़ कितना
नहीं रुकने वाला किसी की ज़ोर ज़बरदस्ती से
कर लो बुलंद अपने इरादे सारे
हो जाओ तुम जंग के लिए तैयार
आज़माने दो दुनिया वालों को वहीं पुराने हथियार
डरना नहीं तुम ना होना पीछे
ये जंग है मुहब्बत वालों की
बस रखो हौसला तुम
जल्द ही होगी तुम्हारी फतेह
-सौरभ सुभी