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बेचैनी

· sneha chaand

बेचैनी

प्यार है यार,
सोच-समझ के थोड़ी होता है यह।
कैसे हो गया प्यार तुमसे,
मैं भी तो हूं बेखबर मेरे दिल कि इन हरकतों से।
मैं भी तो अब बेचैन हूँ
दिल ना मेरा मान रहा, ना तुम सुनती हो मेरी।
तुम्हें नाम नहीं देना,
बिना नाम का यह रिश्ता हमारा, दर्द भरा।
तुम चाहती हो कि,
इस दर्द में ही मैं अपनी खुशी ढूंढ़ लूं!
तुम सच बोलना अब
क्या तुम इसमें खुश हो?
या तुम अपने आपको ही झूठ बोल रही हो?
तुम जो तकलीफ मुझे बक्ष रही हो,
तुम भी तो हो उसी में डूबी।\

चाँद