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ज़िद्द

· sneha chaand

ज़िद्द

तुम इतना भी ज़िद्द मत करो,
की मैं अपने आप को ना रोक पाऊं फिसलने से।
अगर फिसल गई तो,
मैं अपनी ही नजरो में गिर जाऊंगी।
तब तुम क्या ही पालोगे मुझे?

जब तुम्हे अपनी मनमानी से फुरसत मिले तब थोड़ा इधर भी नज़र डाल देना
शायद तुम्हे दिख जाए, क्या हालत है मेरी।
शायद तब, तुम समझ जाओ
कैसी तकलीफ दे रही है मुझे तुम्हारी ये ज़िद्द।

चाँद